"इलेक्टोरल बॉण्ड-सर्वाधिक दानदाता कम्पनी और राजनीतिक दल"

 "Electoral Bonds: Top Donor Companies and Political Parties"

चुनावी बॉन्ड ,राजनीति दलों को चंदा अथवा दान देने का एक वित्तीय माध्यम है। कुछ भारतीय संगठनों एवं कानून के जानकारों के अनुसार इस चुनावी बॉण्ड में कुछ तर्क और दोष बताए गए। ईसीआई द्वारा जारी आँकड़ों में भारत के प्रमुख नामचीन कंपनियों के नाम शामिल हैं।











चुनावी बॉन्ड का अर्थ और भूमिका 

चुनावी बॉन्ड ,राजनीति दलों को चंदा अथवा दान देने का एक माध्यम है। दान देने की यह प्रक्रिया सालों से चली आ रही है यह कोई नया शब्द नही है परंतु बी जे पी सरकार में इसे एक नए नाम से संबोधित कर इस प्रक्रिया को कानूनी जामा पहना दिया गया जिसे चुनावी बॉन्ड के नाम से जाना जाता है।


चुनावी बॉन्ड की विशेष शर्तें

चुनावी बॉन्ड के माध्यम से भारत का कोई भी नागरिक, संस्था या कंपनी चंदा दे सकती है भले भी वह कंपनी पिछले कुछ वर्ष से लाभ कमा रही हो या हानि कर रही हो।

दान की राशि को 1 हजार,10 हजार,1 लाख 1 करोड़  रुपये के रुप में विभक्त किया गया ।

दान दाता की जानकारी गोपनीय रखी जायेगी ताकि कोई दूसरी पार्टी सत्ता में आने पर उसे किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचा सकें।


चुनावी बॉन्ड की भूमिका

सभी राजनीतिक दल समय समय पर सम्मेलन समारोह, करते हैं,एवं चुनावों के समय प्रचार प्रसार इत्यादि पर पैसा ख़र्च करते हैं चूँकि इन राजनीति दलों को प्रचार प्रसार इत्यादि पर सरकार से खर्च की कोई राशि नही मिलती इसलिए यह दल उस दान स्वरूप धन का इस्तेमाल पार्टी के प्रचार प्रसार पर करते हैं।

और इस पैसे का इस्तेमाल सभी राजनीतिक पार्टियाँ चुनाव जीतने के लिए इस धन का इस्तेमाल करती हैं।

जो पैसा पहले कैश में लिया जाता था अब उसको लेने का माध्यम बॉन्ड कर दिया गया। 


चुनावी बॉन्ड को लागू करने के पीछे तर्क-


-पैसे की कालाबाज़ारी को कम करना

- इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से बैंक द्वारा लेन देन करना

-पैसे के लेनदेन को वैध बनाना

-चुनावी बॉन्ड द्वारा फंडिंग को पारदर्शी बनाना

-दानदाताओं को बॉण्ड खरीदने के बदले में कर में छूट दी जाएगी

भारतीय संगठनों, कानूनी सलाहकारों  द्वारा चुनावी बॉन्ड पर विरोध एवं याचिका दायर के तर्क

 कुछ भारतीय संगठनों एवं कानून के जानकारों के अनुसार इस चुनावी बॉण्ड में कुछ तर्क और दोष बताए गए जो इस प्रकार  हैं

-अनुच्छेद 19(1)ए ,आर्टिकल का हवाला देते हुए कहा गया कि वह नागरिकों को जानकारी माँगने के अधिकारों का उल्लंघन करता है क्योंकि हर नागरिक को अधिकार है यह जानने का की किस व्यक्ति या संस्था ने किस दल को कितना पैसा दिया

-केवल वही कंपनी  चंदा देने योग्य होसकती  है जो लाभ अर्जित कर रही हो न कि जो हानि कर रही हो इत्यादि तर्क दिए गए और इस कारण सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई की प्रक्रिया को और तेज़ कर दिया

चुनाव आयोग का बॉण्ड को लेकर तर्क दिया गया कि इससे और फ़र्ज़ी कंपनियों(सेल कंपनी) का आगमन होगा 


संसद सत्र में चुनावी बॉन्ड का आगमन वर्ष-


भारतीय जनता पार्टी की सरकार में वर्ष 2017 के केंद्रीय बजट  में चुनावी बॉन्ड की घोषणा की गई थी और तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस योजना को विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा चंदा लेने में पारदर्शिता के लिए लागू किया गया और 29 जनवरी 2018 को इसे पूरी तरह लागू कर दिया गया था।इस बॉन्ड का अर्थ था कि कोई भी देश का नागरिक ,कंपनियाँ, किसी भी राजनैतिक दल को गुप्त तरीके से कितनी भी राशि दान स्वरूप देने की अनुमति इस चुनावी बॉन्ड के तहत प्रदान की गई थी।

साथ ही इसमें यह शर्त थी कि सरकार उन दानदाताओं की जानकारी गुप्त रखेगी।

सही मायने में विवाद,और विरोध की जड़ की शुरुआत यही से प्रारंभ होती हैं क्योंकि विरोधी दलों(लोकतांत्रिक सुधार संघटन (एडीआर) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) )का कहना था की ऐसा करने से आमजनता(नागरिकों) के दान स्वरूप आए धन के स्रोतों के बारे में संविधान के अनुच्छेद 19(1)ए। के तहत सूचना के अधिकारों एवं  जानने के अधिकारों का हनन होगा।


चुनावी बॉण्ड की प्रक्रिया में  एसबीआई(SBI ) कि भूमिका-

 यह बॉण्ड वर्ष में 4 बार ही खरीदा जा सकता है अर्थात प्रत्येक तिमाही में केवल 10 दिन के लिए ही यह बॉण्ड बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे।

इसको खरीदने के लिए केवल एसबीआई कि शाखा से ही इसे खरीदा जा सकता है।

और एस बी आई के पास ही दानदाता की सम्पूर्ण जानकारी गुप्त रुप से सुरक्षित रखी जा रही थी।

कुछ चुनिंदा शाखा से ही इसे क्रय किया जा सकता है।

बैंक से इसे क्रय करने के उपरांत 15 दिनों के अंदर इस बॉण्ड को उस पार्टी को सौंपना होता है जिसे वह दान देना चाहते हैं।


चुनावी बॉण्ड पर एसबीआई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश-

चुनावों में किस राजनीतिक पार्टी को कितना धन चंदे के रूप में मिला इसकी पारदर्शिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट के  मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचुड़ द्वारा भारती स्टेट बैंक को चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों  को विस्तृत रूप से उजागर करने के निर्देश जारी कर दिए हैं ।चुनावी वित्त में एकत्रित धन  की जानकारी को पारदर्शी बनाने पर जोर देता है।

डेटा की गोपनीयता को बरकार रखने के संदर्भ में भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) ने चुनावी बॉन्ड के डेटा को वापस लेने के लिए याचिका दायर की थी  जिस पर  सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक रजिस्ट्रार को यह आदेश दिया है कि वह पूरे डेटा को डिजिटल करके न्यायालय की वेबसाइट पर सोमवार तक अपलोड करके यथासीघ्र डेटा को भारतीय चुनाव आयोगसौंप दिया जाए

सुप्रीम कोर्ट की पिछले आदेश के अनुसार कोर्ट ने ईसीआई को 15 मार्च तक का समय दिया था कि जो डेटा एस बी आई से उसके पास सीलबंद लिफाफों में आया है उसे वह अपनी वेबसाइट लार प्रकाशित करे


हालांकि पहले एसबीआई की तरफ  डेटा की जानकारी को सौंपने के संदर्भ में लेटलतीफी देखी जा रही थी परंतु सुप्रीम कोर्ट की पैरवी और निर्देशों को ध्यान में रखते हुए एस बी आई ने मंगलवार12 मार्च को चुनावी बॉन्ड की जानकारी का डेटा ई सी आई के सुपुर्द कर दिया और इसी के साथ 14 मार्च को ईसीआई ने चुनावी बॉन्ड की जानकारी को सार्वजनिक कर दिया है हालांकि अभी भी यह डेटा पूरा नही आया है


चुनावी बॉण्ड खरीदने में सबसे अग्रणी कंपनियाँ-


ईसीआई द्वारा जारी आँकड़ों में भारत के प्रमुख नामचीन कंपनियों के नाम शामिल हैं

 जिनमे प्रमुख नाम हैं-

1.Grasim Industries

2.Apolo Tyers

3. Megha Engineering

4.Piramal Enterprises

5.Lakshmi Mittal

6.Edelweiss

7.PVR

8.Welspun

9.Sun Pharma

10.Sulawine

11.DLF

12.Vedanta

13.Bharti Airtel

14.Keventer

15.Torrent Power

16.Vardhman Textiles

17.Ciyet Tyers

18.Raddy’s Laboratories

19.ITC

20.Ultratech Ciment

21.Cipla

22.KP Enterprises इत्यादि  कंपनियाँ चुनावी बॉण्ड खरीदारों की श्रेणी में अग्रणी दानदाता हैं।


किस राजनीतिक दल को दान (चंदा) स्वरुप प्राप्त राशि- 

केवल फ्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज ने 1350 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं परन्तु इनका नाम अभी सामने नही आया है जिसकी अभी जाँच अभियान जारी है 


हालांकि अभी केवल यही कंपनी नही हैं जिन्होंने चुनावी बॉन्ड के ज़रिए राजनीतिक दलों को चंदा दिया है अभी और भी नाम आना बाकी है।

जिन राजनीतिक पार्टियों को बॉन्ड के माध्यम से पैसा दिया गया है उनमें प्रमुख पार्टी हैं-भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, ऐ आई ए डी एम के, शिवसेना टी डी पी आदि पार्टियाँ शामिल हैं

चुनावी बॉन्ड के भारतीय जनता पार्टी ने सबसे अधिक चंदे की राशि प्राप्त कर 6566 करोड़ लगभग कुल चुनावी बॉन्ड का लगभग 55.77% की सहयोग राशि प्राप्त की है।साथ ही कांग्रेस की 1123 करोड़ की सहयोग राशि के साथ 9.37% की हिस्सेदारी दर्ज की है और तृणमूल कांग्रेस की 1092 करोड़ अर्थात9.11% की हिस्सेदारी देखी गई है।


सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 15 फरवरी को  चुनावी बॉन्ड को  पूरी तरह से असंवैधानिक करार दिया था और अदालत ने 6 मार्च तक एस बी आई को चुनावी बॉन्ड के खरीदारों की दान राशि एवं क्रय की तिथि इत्यादि से संबंधी जानकारी को चुनाव आयोग को सौंपने के निर्देश दिए थे और चुनाव आयोग को यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर 13 मार्च तक सार्वजनिक करने के निर्देश दिए गए थे।

इसका अंतिम निर्णय दिया था 

एस बी आई ने  संबंधित जानकारी देने के लिए जून तक का समय मांगा था परंतु कुछ अन्य भारतीय दल 

लोकतांत्रिक सुधार संघटन (एडीआर) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी)  संगठनों ने 7 मार्च को  एस बी आई के चैयरमेन के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर दी थी  जिसके चलते और  न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए उसे यह जानकारी जल्दी सार्वजनिक करनी पड़ी।

यदि कुल चुनावी बॉन्डों की संख्या की बात की जाए तो अप्रेल 2019 से लेकर 15 फरवरी शुक्रवार तक सभी राजनीतिक दलों को दान देने के लिए 22,217 कुल चुनावी बॉन्ड खरीदे गए।

चुनावी बांड का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है पूर्ण रूप से अभी इसकी जाँच नही हो पाई है 18 मार्च ,सोमवार को इस पर आदेश और सूचना की जानकारी सार्वजनिक करने को लेकर जानकारी दी जाएगी


इस लेख से सम्बंधित प्रश्न  ( FAQ )

क्या बांड के माध्यम से कालाबाज़ारी को कम किया जा सकता है -

हाँ , क्योंकि चुनाव  के समय चंदा देने की परंपरा बहुत पहले से चली  रही है  इलेक्टोरल बांड के माध्यम से सभी राजनितिक दलों को कुल कितना चंदा प्राप्त हुआ इसके बारे में पता चलता है और इसकी जानकारी देश की बैंक के पास सुरक्षित रहती है  इस कारण से कैश में चंदा देना भी बंद हो गया हैं। 

Q  1.  कितने रूपए तक की राशि के इलेक्टोरल बांड जारी किये गए -

   A . 1000               B. 10000              C . 100000                   D . उपर्युक्त सभी 

Q  2.   इलेक्टोरल बांड एक वर्ष  के अंतर्गत कितनी बार खरीद-बिक्री  के लिए उपलब्ध होता है 

  A.  वर्ष में बार        B. वर्ष में 9  बार       C. वर्ष में 4 बार        D. वर्ष में 3 बार  


आशा करते हैं की इस लेख से जुडी जानकारी और तथ्यों ने आपकी जानकारी को बढ़ाया होगा।  इस लेख से सम्बंधित किसी भी जानकारी अथवा सुझाव देने  के लिए आप हमें कमेंट ,संपर्क पेज के माध्यम से अपने सुझाव हम तक अवश्य पहुँचाएं। 



 


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